Friday, September 3, 2010
जे.एन.यू. छात्र संघ चुनाव उर्फ़ किस्सा –ए- लोकतंत्र
दोस्तों आज जब इस कैम्पस के गेट के बाहर लोकतंत्र को धनतंत्र और बाहुबलतंत्र में बदल देने की साजिशे जारी है। जब देश में अलग- अलग जगहों पर चुनाव विचारधारा पर नही बल्कि फ़ेसवैल्यू, जाति, धर्म के समीकरणों पर लड़े जा रहे हो तब सबकी नजरे जे एन यू के छात्रों की ओर है। पिछले तीन सालों से कैम्पस में छात्र संघ चुनाव नही हुये है और जिसका असर हम आप सभी देख रहे है। चुनाव इस कैम्पस के लिये महज छात्र प्रतिनिधि चुनने भर कि प्रक्रिया नही है बल्कि छात्रसंघ चुनाव इस कैम्पस की सांस्कृतिक परंपरा , हमारे आम जीवन का एक बड़ा हिस्सा है। जे.एन.यू. छात्र संघ के चुनावों ने सालों से इस देश के सामने लोकतंत्र का एक आदर्श रखा है। इस कैम्पस में हम अपने छात्र प्रतिनिधियों से चुनाव के पहले सवाल करते है, उनके पिछले साल के कामों का लेखा जोखा माँगते है, उनसे जुड़े हुए राजनैतिक दलों की नीतियों और कामों पर सवाल खड़े करते रहे है । जे.एन.यू. के चुनावों ने हमे वो लोकतांत्रिक माहौल मुहैया कराया है जहाँ हम अपने अधिकारों, सरकार की नीतियों को बहस के दायरे में ला सके । देश के तमाम अन्य विश्वविद्यालय जहाँ कई सालों से चुनाव नही हो रहे वहाँ कैम्पस प्रशासन ने सुनियोजित तरीके से छात्रों से अपनी बात रखने का मौलिक अधिकार भी छीन लिया है । चुनावों में हम जो बहसे गंगा, गोदावरी ढ़ाबा से लेकर अपने स्कूल की सीढ़ियों तक किया करते थे आज वो बहसें हमारे होस्टल के कमरों तक सिमट कर रह गयी है। जे.एन.यू. के चुनावों में हास्टल से लेकर फ़िलस्तीन तक मुद्दे हुआ करते थे और बहस इस बात पर हुआ करती थी कि विकास का कौन सा माडल इस देश के लिये सही है। बहसों, विमर्शों की वो लोकतांत्रिक परम्परा आज खतरे में है और साल- दर – साल चुनाव ना होने से ये खतरा और भी गहराता जा रहा है। समय और इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर जहाँ आज हम खड़े है, हमें तय करना होगा कि इस कैम्पस ने हमे लोकतंत्र की जो चेतना दी थी उसे हम कितना आगे ले जा पाते है। चुनाव न होने से सिर्फ़ बहसों और विमर्शों की परंपरा को ही नुकसान नही हुआ है बल्कि प्रशासन ने भी इस वैक्यूम का फायदा उठाते हुए ऐसे अनेक कदम उठाये है जिनसे इस कैम्पस का आम छात्र प्रभावित होता है चाहे वो हास्टल की कमी हो, राजीव गाँधी फ़ेलोशिप का मुद्दा हो या इस साल अचानक मेस सिक्योरिटी के नाम पर एक हजार रूपये और लेने का मामला हो । जे.एन.यू. इस देश के उन हजारों छात्रों का सपना है जो अपने गाँवों, कस्बों में अभावों में पढ़ते हुए एक बेहतर भविष्य की उम्मीद रखते है । आर्थिक सामाजिक तौर पर कमजोर वो हजारों छात्र आज हमारी ओर उम्मीद भरी आँखों से देख रहे है। साथियों ! हम आप से अपील करते है कि आप अपने छात्र संगठनों, दोस्तों से बात करे और हम सब एक आम सहमति बनाये कि जे.एन.यू. छात्र संघ के चुनाव जल्द से जल्द हो। इससे पहले कि जे.एन.यू. छात्रसंघ चुनाव NCERT की किताबों में आदर्श लोकतंत्र का चैप्टर बन कर रह जाये हमें अपनी लोकतांत्रिक विरासत को बचाना होगा ।
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ललित कुमार, मनीष सोनी, विवेक शुक्ला, तमन्ना ख़ान, सरफ़राज ख़ान, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, किरन पवार , अज़ीजउर रहमान, नीरज झा और तमाम साथी..।
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